दिल्ली दंगों के आरोपी ताहिर हुसैन का जेल से आना क्या बीजेपी के लिए खुशखबरी है?

R. S. Mehta
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दिल्ली दंगे के आरोपी ताहिर हुसैन को चुनाव प्रचार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 72 घंटे की पैरोल दी है. 2020 से जेल में बंद ताहिर हुसैन मुस्तफाबाद से असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं. मुस्तफाबाद विधानसभा सीट एक मुस्लिम बहुल सीट है, जो चुनाव परिणाम को लेकर पहले भी कई बार चौंका चुका है.

ताहिर के जेल से निकलने और चुनाव प्रचार करने को लेकर कई तरह की सियासी चर्चाएं चल रही है. सीट का समीकरण से लेकर संख्या और गुणा-गणित निकाले जा रहे हैं, लेकिन ताहिर को मिली पैरोल सबसे ज्यादा बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है. कैसे, आइए विस्तार से जानते हैं…

मुस्तफाबाद का जातीय समीकरण

2008 में मुस्तफाबाद सीट का परिसीमन हुआ था. तब से यहां 3 पार्टियों ने जीत दर्ज की है. 2 बार आम आदमी पार्टी, एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस को यहां पर जीत मिली है.

मुस्तफाबाद विधानसभा सीट पर मुसलमान सबसे ज्यादा हैं. यहां पर करीब 39 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं. यानी इलाके में हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी करीब 61 प्रतिशत है.

हिंदू में सबसे ज्यादा आबादी यहां पर अति पिछड़े, ब्राह्मण और ठाकुर समुदाय की है. तीनों समुदाय के करीब 30 प्रतिशत वोट इस सीट पर है. मुस्तफाबाद में ब्राह्मण 12 प्रतिशत और जाट-गुर्जर 6 प्रतिशत है.

इस सीट पर वैश्य की भी आबादी करीब प्रतिशत के आसपास है. यहां अधिकांश हिंदू या तो पूर्वांचल के हैं या उत्तराखंड के. मुस्तफाबाद सीट के तहत नेहरू विहार, शिव विहार, प्रेम नगर, चंदू विहार जैसे इलाके आते हैं. इन इलाकों में हिंदू वोटरों का दबदबा है.

ताहिर को पैरोल बीजेपी के लिए फायदेमंद?

1. मुसलमानों के 3 मजबूत उम्मीदवार- आम आदमी पार्टी ने पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे आदिल अहमद को यहां से उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस ने अली मेहदी को टिकट दिया है तो वहीं असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने ताहिर को मैदान में उतारा है. ताहिर इसी इलाके के वार्ड पार्षद रहे हैं.

स्थानीय स्तर पर ताहिर की भी मजबूत पकड़ है. यानी इस सीट पर 3 मजबूत मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं. आदिल जहां पुरानी पकड़ और आम आदमी पार्टी के वादों के जरिए मुसलमानों को साधने में जुटे हैं. वहीं जेल से बाहर निकलकर ताहिर सिंपैथी वोट झटकने की कोशिश करेंगे.

दोनों की लड़ाई में कांग्रेस के अली मेहदी भी मजबूती से मुसलमानों को साध रहे हैं. तीनों के बीच अगर मुस्लिम वोट बंटता है तो इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को होगा.

2. यहां बीजेपी जीत चुकी है चुनाव- सीलमपुर, बल्लीमारान, ओखला, मुस्तफाबाद, मटियामहल और जंगपुरा मुस्लिम बहुल सीट है. इनमें से मुस्तफाबाद ही ऐसी सीट है, जहां से बीजेपी चुनाव अब तक जीत पाई है.

2015 में आम आदमी पार्टी की लहर के बावजूद बीजेपी ने मुस्तफाबाद सीट पर जीत हासिल की थी. 2015 में बीजेपी के जगदीश प्रधान ने आप हसन अहमद को हराया था. जगदीश को 6,031 वोटों से जीत मिली थी.

आप के उम्मीदवार हाजी युनूस इस चुनाव में 49,791 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे थे. ताहिर के जेल से बाहर निकलने पर बीजेपी को 2015 की तरह नतीजे आने की उम्मीद जग गई है.

3. धार्मिक ध्रुवीकरण की भी गुंजाइश- आमतौर पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के विधानसभा चुनाव में मुद्दे ही हावी रहते हैं. ताहिर के जेल से बाहर निकलने के बाद जहां उनकी पार्टी AIMIM मुखर हो रही है. वहीं कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साइलेंट हैं.

असदुद्दीन ओवैसी अगर और ज्यादा मुखर होते हैं और ताहिर सिंपैथी का माहौल बनाने में कामयाब होते हैं, तो इसका सीधा लाभ बीजेपी को मिल सकता है. दिल्ली में विधानसभा की 70 सीटें हैं, जहां पर 12 सीट मुस्लिम बहुल है.

अब ताहिर हुसैन को जानिए

मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रहने वाले ताहिर 2020 में पहली बार सुर्खियों में आए. सीएए-एनआरसी को लेकर दिल्ली में जब दंगा हुआ, तब उन पर साजिश रचने और दंगाईयों को शह देने का आरोप लगा. ताहिर पर यूएपीए समेत आईपीसी धारा 147, 148, 153A, 302, 365, 120B, 149, 188 और 153A के तहत गंभीर केस दर्ज हैं.

जेल जाने से पहले ताहिर वार्ड पार्षद थे. दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले असदुद्दीन ओवैसी ने ताहिर को मैदान में उतारने की घोषणा की थी. इसके बाद ताहिर ने पैरोल पर बाहर आकर अपना नामांकन दाखिल किया था.

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